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मित्रता का अर्थ
मित्र अर्थात् दोस्त. इस संसार के सभी सुन्दर शब्दों में से एक बहुत ही प्यारा शब्द है मित्र. हमारी ज़िंदगी में सभी रिश्ते या तो ईश्वर बनाता है या तो समाज. लेकिन मित्र का चुनाव हम स्वयं करते हैं और मित्रता का यह संबंध दिमाग से सोचकर तय नहीं किया जाता बल्कि एक दूसरे के मन से जुड़कर यह खुद ही बन जाता है.
जो हमारे मन को भा जाए बस वही हमारा मित्र हो जाता है. यह संबंध दिल से जुड़ता है और इसे जुड़ने के लिए ना तो अधिक सोचने की ज़रुरत पड़ती है और ना ही अधिक प्रयास की.
मित्रता कैसी होनी चाहिए?
मित्रता एक ईश्वरीय वरदान है जो किसी सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही नसीब होता है. मित्र को हम सच्चा या झूटा नहीं कह सकते, क्योंकि मित्र तो मित्र होता है. जो सच्चा नहीं वो मित्र कैसा और जो झूटा है वो तो किसी का मित्र ही नहीं.
देखा जाय तो इस संसार में दो ही रिश्ते हमेंशा स्वार्थ से परे होते हैं, एक है माँ की ममता और दूसरा है मित्र की मित्रता. जो सिर्फ हमारे कानों को अच्छी लगने वाली बात करे वो मित्र कैसा. मित्र तो वो है जो सच्चाई से हमें अवगत करवाकर, हमें हमारा भला-बुरा समझाकर हमारे हर सुख-दुःख में हमेंशा हमारे साथ खड़ा रहता है.
मित्र वह दर्पण है जो हमारा स्वयं से साक्षात्कार करवाता है. मित्र उस बहती हवा की तरह है जो भले ही हर वक़्त दिखाई ना दे लेकिन जिसका होना हमारे लिए अनिवार्य होता है. मित्रता वह खूबसूरत संबंध है जो किसी भी औपचारिकता और स्वार्थ से परे है.
कृष्ण सुदामा की मित्रता
जहां पर मित्रता का जिक्र हो वहां पर कृष्ण और सुदामा का जिक्र ना आए, यह तो हो ही नहीं सकता. कृष्ण और सुदामा के रिश्ते ने तो मित्रता की पराकाष्ठा को भी पार कर लिया था.
कृष्ण और सुदामा की मित्रता ने मानव जीवन को यह सीख दी है कि मित्र तो केवल मित्र होता है. मित्रता का स्थान किसी भी धर्म या जाति से सर्वथा ऊपर होता है. इसमें ना तो कोई अमीर होता है और ना ही कोई गरीब.
कृष्ण और सुदामा की मित्रता को सबसे बड़ी मिसाल के रूप में जाना जाता है. इनके बीच मित्रता का जो संबंध है उसमें ना तो अमीरी व गरीबी का कोई भेद है और ना ही किसी तरह की अपेक्षा का भाव. कितना अद्भुत संबंध है दोनों का.
मै जब भी उस दृश्य की कल्पना करती हूँ तो अनायास ही इन नेत्रों से अश्रु की धारा छलक पड़ती है कि कैसे त्रिभुवन के स्वामी श्री कृष्ण अपने दरिद्र मित्र सुदामा से मिलने सब कुछ छोड़-छाड़कर नंगे पाँव दौड़ पड़ते हैं, उन्हें गले लगाते हैं और बिना कुछ कहे ही अपने मित्र के संकोच, शर्म और परेशानी को समझ लेते हैं और बिना मांगे ही अपने बाल सखा सुदामा को वो सब कुछ दे देते हैं जिसकी सुदामा को आवश्यकता थी.
मै भी संसार के उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हूँ जो मित्रता की दृष्टि से बहुत अमीर हैं. जिसके पास मित्रता का कभी ना ख़त्म होने वाला खजाना है. मेरे बचपन के मित्र, स्कूल के मित्र, कॉलेज के मित्र, बी.एड. कॉलेज के मित्र, जॉब के दौरान बने मित्र, जीवनसाथी के रूप में मिला मित्र और भी वे मित्र जो जीवन के इस सफ़र में चलते-चलते मेरे साथ जुड़े और मेरे मित्र बन गए.
आज मै अपने ह्रदय की भावनाओं को रोक ना सकी और स्वतः ही मेरे मन में उमड़ने वाले ये विचार आज मेरी लेखनी में आ गए. मन ने कहा कि अपनी भावनाओं को अपने मित्रों के साथ बांट लूं तो आप सभी के साथ शेयर कर लिया.
आज मित्रता दिवस के इस ख़ास अवसर पर मै इस लेख के माध्यम से अपने उन सभी मित्रों का तहे दिल से धन्यवाद करना चाहती हूँ जिनके साथ मैंने अपने जीवन के ना जाने कितने सारे खूबसूरत लम्हें जिये और कितने ही सुख-दुःख बांटे.
शायद आप नहीं जानते कि आप सभी मित्र मेरे लिए कितने ख़ास हैं. मुझमें लाख कमियां होने के बावजूद मुझे अपनाने और मुझ पर अपना स्नेह बनाए रखने के लिए आज आप सभी का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ और सदैव आप सभी की सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ.
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी मित्र प्रीतिका गोदियाल सेमवाल.