अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस – कब और क्यों मनाया जाता है?

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस - International Women's Day

भारतीय संस्कृति में महिला के सम्मान को बहुत महत्त्व दिया गया है. महिला ही समाज की रचियता हैं. आइए जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कब और क्यों मनाया जाता है.

‘मनुस्मृति’ में कहा गया है:

”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:”

अर्थात् जिस कुल में नारी की पूजा और सत्कार होता है वहां देवी, देवता स्वयं निवास करते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा व सम्मान नहीं किया जाता वहां सभी प्रकार की पूजा अर्चना के बाद भी भगवान प्रसन्न नहीं होते हैं.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कब मनाया जाता है?

पूरे विश्व भर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है. इस दिन को मनाने की शुरुआत आज से 113 वर्ष पहले यानि वर्ष 1908 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में हुए महिला आंदोलन से हुई थी.

महिला दिवस पर दुनिया के सभी विकसित और विकासशील देश मिलकर महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व राजनैतिक अधिकारों के विषय में चर्चा करते हैं.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है?

कहा जाता है कि वर्ष 1908 में न्यूयॉर्क में 15 हजार महिलाओं ने सड़क पर मार्च करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था. उनकी मांग थी कि महिलाओं को वोट डालने का अधिकार मिले, ज्यादा वेतन और उनके काम करने के घंटों को कुछ कम किया जाए.

इसके बाद कॉपेनहेगन में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में क्लेरा जेटकिन नामक महिला ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस को मनाने का सुझाव दिया और तभी से महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का फैसला लिया गया था.

महिलाओं और पुरुषों में समानता लाने के लिए और महिलाओं को उनके सम्मान और अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है.

इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना और महिलाओं व पुरुषों में समानता बनाने के लिए जागरूकता लाना. सामजिक, राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक विकास में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए यह दिन मनाया जाता है.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 की थीम

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 की थीम है – ”Women in leadership: Achieving an equal future in a COVID-19 World” (”महिला नेतृत्व: COVID- 19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना”)  

बीते साल 2020 में वैश्विक महामारी COVID-19 के कहर से सारी दुनिया प्रभावित हुई है. इसलिए यह थीम COVID-19 महामारी के दौरान कोरोना योद्धाओं के रूप में सबसे आगे खड़े रहकर मानवीय सेवा में अपना योगदान देने वाली लड़कियों और महिलाओं को ध्यान में रखते हुए रखी गई है.

कोरोना महामारी से लड़ने व लोगों की जान बचाने के लिए कई महिला डॉक्टर्स और नर्सों ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की और अपनी जान को ख़तरे में डालकर दिन-रात मानव जन की सेवा की.

कैसे मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस?

यह एक ऐसा दिन है जब हम समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था और शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की तरक्की का जश्न मनाते हैं. दुनिया के हर एक हिस्से में महिला दिवस अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है.

हमारे देश भारतवर्ष में इस दिन महिलाओं पर आधारित कई सारे रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. महिलाओं को शुभकामना संदेश और तौहफे दिए जाते हैं.

इस शुभ अवसर पर महिला व बाल विकास मंत्रालय द्वारा व्यक्तियों, समूहों, गैर सरकारी संगठनों या संस्थानों को नारी शक्ति पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार महिलाओं को सशक्त बनाने के क्षेत्र में किए गए असाधारण कार्य हेतु दिया जाता है.

लैंगिक समानता को लेकर कई परिचर्चा, सेमिनार व गोष्ठियों का आयोजन होता है. बहुत से देशों में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है.

भारत में महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए और उन्हें सशक्त बनाने के लिए बहुत से लोगों ने अपना योगदान दिया है और इस श्रृंखला में राजा राम मोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्या सागर, केशव चन्द्र सेन और स्वामी विवेकानन्द जैसे महापुरुषों का नाम सबसे पहले आता है जिनके प्रयासों से नारी संघर्ष की क्षमता की शुरुआत हुई.

भारत में भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. महिलाओं के सम्मान में तरह तरह के समारोह का आयोजन होता है, समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए महिलाओं को सम्मानित किया जाता है. कई सारे संस्थान गरीब महिलाओं की आर्थिक मदद करने की घोषणा भी करते हैं.

क्या वाकई में आज भी महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त हैं?

भारत में महिलाओं को मौलिक अधिकार, शिक्षा का अधिकार तो प्राप्त है लेकिन आज भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ पर महिलाएं आज भी अभावों में अपनी पूरी जिंदगी बिता देती हैं.

भले ही वर्तमान समय में बेटा और बेटी के बीच का फर्क घटा हो लेकिन ये फर्क आज भी कुछ ही वर्ग तक सीमित है. हमारे समाज में आज भी बेटी से ज्यादा बेटे की चाह रखने वालों की संख्या कई अधिक है.

आज महिला सशक्तिकरण की बात तो हर कोई करता है लेकिन, जमीनी हकीकत तो कुछ और ही दास्तां बयां करती है. आज भी कई लोगों के लिए महिलाओं की भूमिका केवल घरेलू कामों, चूल्हा, चौका और बर्तन तक ही सीमित है.

मुस्लिम देशों में महिलाओं का सबसे ज्यादा शोषण किया जाता है. तुगलकी फ़रमानों का कहर सबसे पहले महिलाओं पर ही टूटता है. घर हो या बाहर, घृणित और संकुचित मानसिकता वाले लोगों के द्वारा महिलाओं का हर जगह शोषण किया जाता है.

जहाँ पर महिला अपनी स्वतंत्रता, समानता और हक़ की बात करती है वहां पर वो अकेली रह जाती है या फिर मर्यादा का हवाला देकर ख़ामोश करा दी जाती है और यह तस्वीर सिर्फ़ अशिक्षित या पिछड़े तबके की ही नहीं बल्कि ऊंचे, प्रतिष्ठित, शिक्षित और सभ्य कहे जाने वाले समाज की भी है.

आज भी कई देशों में महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित हैं, समाज में उन्हें समानता का अधिकार प्राप्त नहीं है, वे शिक्षा व स्वास्थ्य की दृष्टि से भी पिछड़ी हुई हैं.

एक महिला किसी भी चीज़ से पहले अपने लिए सिर्फ़ सम्मान की चाह रखती है लेकिन आज के मॉडर्न समाज में भी महिलाओं को अपने आत्मसम्मान की लड़ाई अकेले ही लड़नी पड़ती है, आज भी उन्हें अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ता है.

संकुचित सोच को बदलना है ज़रुरी

आज लैंगिक समानता का दौर बढ़ रहा है. इसलिए लोगों को अपनी संकुचित सोच से बाहर निकलना ही होगा. महिलाओं को सम्मान के साथ-साथ अपने साथ बराबरी का भी हक़ दीजिए.

महिलाएं सिर्फ़ रसोई तक ही सीमित न रह जाएं इसके लिए उन्हें हर तरह के समाज में समान नज़रिए से देखना और सम्मान की नज़र से देखना बहुत आवश्यक है. तभी इस समाज की और फिर देश की उन्नति संभव है.

सभी पाठकगणों को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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