होली कब है? 2022 – होली के बारे में जानकारी – क्यों और कैसे मनाई जाती है?

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होली कब है? - होली के बारे में जानकारी

आज की इस पोस्ट में जानिए होली कब है और होली के बारे में जानकारी. होली का त्यौहार पारंपरिक व सांस्कृतिक हिंदू त्यौहार है जो प्रत्येक वर्ष बड़े ही आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाता है.

भारत में हर मौसम में अलग-अलग त्यौहार आते हैं जो सभी को मिलने-जुलने के अवसर प्रदान करते हैं. बसंत ऋतु का मौसम अपने साथ सबसे रंगीन त्यौहार ‘होली’ लेकर आता है.

होली का त्यौहार सभी के जीवन में ढेर सारी खुशियां और रंग भर देता है. इस कारण इसे आमतौर पर ‘रंग महोत्सव’ कहा जाता है और लोगों के बीच प्यार व एकता लाने के कारण इसे ‘प्यार का त्यौहार’ भी कहा जाता है. रंगों का त्यौहार होली एक ऐसा पर्व है जिसके रंगों में रंगने के लिए विदेश से भी लोग भारत आते हैं.

होली कब है? Holi Kab Hai?

होलिका दहन के अगले दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है. होली का त्यौहार लगातार दो दिन तक चलता है. जिस दिन रंगों से होली खेली जाती है उस दिन को धुलेंदी कहते हैं और उससे एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. होली का त्यौहार हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस साल होली 18 मार्च, 2022 को मनाई जाएगी.

होलिका दहन कब है? – Holika Dahan Kab Hai? – (Holika Dahan 2022)

फाल्गुन मास में होली से एक दिन पहले छोटी होली मनाई जाती है और इसी दिन रात के समय होलिका दहन का पूजन होता है. इस दिन गांव के किसान अपनी नई फसल के दाने अग्निदेव को चढ़ाते हैं.

होलिका की अग्नि में नए अन्न के ये दाने चढ़ाने के बाद ही किसान नया अन्न खाना शुरू करते हैं. इस वर्ष होलिका दहन (Holika Dahan 2022) 17 मार्च, 2022 को किया जाएगा और रंगों की होली एक दिन बाद 18 मार्च, 2022 को खेली जाएगी. होली की पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन को अशुभ माना जाता है. 

होलाष्टक कब हैं ? – Holashtak Kab Hain?

शास्त्रों के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है. होलाष्टक होली से 8 दिन पहले शुरू हो जाते हैं.

इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है. इस काल से होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. इस बार होलाष्टक 10 मार्च से 17 मार्च 2022 तक रहेगा और उसके अगले दिन यानि 18 मार्च 2022 को रंगों से होली का त्यौहार मनाया जाएगा.

होलाष्टक का महत्व क्या है? – Holashtak Ka Mahatv Kya Hai?

होलाष्टक शुरू होने पर होलिका दहन के लिए एक पेड़ की शाखा काटकर उसे ज़मीन पर लगाते हैं, इसमें रंग-बिरंगे कपड़े और लाल रंग का नाला बांध दिया जाता है. इस तरह होलिका दहन के लिए होलिका तैयार की जाती है और सजाई जाती है. इसे भक्त प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है.

ऐसी मान्यता है कि जिस क्षेत्र पर होलिका बनाई जाती है, उस क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.

होलाष्टक के बारे में ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहने के कारण राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को बंदी बना लिया था और फाल्गुन मास की अष्टमी से लेकर पूर्णमासी तक बंदीगृह में प्रहलाद को अनेकों यातनाएं दी गई थी.

इसी कारण इस वक़्त में कोई भी शुभ कार्य करने के लिए मना किया जाता है. इस वक़्त वातावरण में एक नेगेटिविटी यानि नकारात्मकता मौजूद रहती है.

होली कैसे मनाई जाती है? – Holi Kaise Manai Jati Hai?

होली कैसे मनाई जाती है? – Holi Kaise Manai Jati Hai?

पूरे देश में होली का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इसे मनाने के तरीके हर जगह अलग-अलग होते हैं. पहले समय में होली का त्यौहार केवल फूलों और फूलों से बने प्राकृतिक रंगों से ही खेलकर मनाया जाता था लेकिन, वर्तमान समय में होली रंगों और गुलाल से खेली जाती है साथ ही एक-दूसरे को पानी से भिगाकर व पिचकारी से पानी डालकर भी होली खेली जाती है.

सभी लोग मदमस्त होकर होली खेलते हैं. जगह-जगह संगीत का आयोजन किया जाता है, कुछ लोग ठंडाई और भांग का भी सेवन करते हैं, नाचते-गाते हैं, खुशियां मनाते हैं, मिठाइयां खाते और खिलाते हैं और गले मिलकर आपसी प्रेम को और भी ज्यादा बढ़ा देते हैं.

इस दिन घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं जैसे- गुझिया, मठरी, शक्कर पारे, नमकपारे, कचरी, चावल के पापड़, सूजी के पापड़, आलू के चिप्स आदि. लेकिन इन सभी में से होली की प्रमुख मिठाई गुझिया है, जिसे सभी लोग बहुत पसंद करते हैं और बड़े ही चाव से खाते हैं.  

होली क्यों मनाई जाती है? – Holi Kyon Manai Jati Hai?

होली मनाने के पीछे कई धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं लेकिन सबसे अधिक प्रचलित है विष्णु भक्त प्रहलाद की कथा. जिसके अनुसार, राक्षस हिरण्यकश्यप अपने ही पुत्र प्रहलाद से नाराज़ और क्रोधित था क्योंकि प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और दिन-रात विष्णु की भक्ति में लीन रहता था.

अतः, हिरण्यकश्यप अपनी बहन होलिका को विष्णु भक्त प्रहलाद का अंत करने के लिए जलती हुई अग्नि में प्रवेश करने का आदेश देता है क्योंकि, होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह कभी भी अग्नि में जल नहीं सकती.

लेकिन जब होलिका भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर जलती हुई अग्नि में बैठी तो होलिका को मिला हुआ वरदान निष्फल हो गया और वह स्वयं उस आग में जलकर मर गई और भक्त प्रहलाद सुरक्षित बच गए.

तभी से होली का त्यौहार मनाया जाने लगा. यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है.

राधा-कृष्ण के प्रेम से जुड़ा है रंगों का त्यौहार होली

होली का त्यौहार राधा-कृष्ण के प्रेम से भी जुड़ा है. बसंत के गुलाबी मौसम में एक-दूसरे पर रंग डालना कृष्ण लीला का ही एक अंग माना जाता है.

ब्रज, मथुरा और बरसाने की होली के चर्चे तो देश ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध हैं. इस त्यौहार का आनंद उठाने के लिए विदेशी पर्यटक भी यहां खिंचे चले आते हैं.

मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम में डूबी हुई होती है. इसलिए राधा के गांव बरसाने में और कान्हा के गांव नन्दगांव में आज भी बड़े ही प्रेम से लठमार होली खेली जाती है. इसमें सभी नगरवासी एक-दूसरे पर लाठी मारते हैं और होली मनाते हैं.

पूरी ब्रजभूमि एक महीने पहले से ही होली के रंगों में रंग जाती है. यहां पर लड्डू होली, लठमार होली, फूलों की होली और रंगों की होली का आयोजन किया जाता है.

प्रेम से जुड़ा है रंगों का त्यौहार होली

प्रेम और माधुर्य का त्यौहार है होली

होली प्रेम और माधुर्य का त्यौहार है. यह प्रेम रस और उमंग का प्रतीक माना जाता है. यह त्यौहार हमें बताता है कि रंगों का हमारे जीवन में कितना महत्व है.

होली के रंग हम सभी को आपस में जोड़ते हैं और रिश्तों में प्रेम व अपनत्व के रंग भरकर जीवन को सुखमय बना देते हैं.

होली के रंग अनेकता में एकता को दर्शाते हैं, ये रंग सभी के मन से कटुता और वैमनस्य को धो देते हैं. इस त्यौहार पर लोग आपसी मतभेद को भुलाकर प्रेम व स्नेह से एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं.

आप भी अपनी होली को सुरक्षित तरीके से प्राकृतिक रंगों से सराबोर करें और अपनी होली को रंगीन बनाएं.

सभी पाठकगणों को रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएं.

…. HAPPY HOLI ….

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