उत्तराखंड प्राचीनकाल से ही अपनी परम्पराओं, संस्कृति एवं लोक पर्वों के माध्यम से प्रकृति के प्रति प्रेम व सद्भावना को दर्शाता रहा है. यहां के रीति-रिवाज भी कुछ ऐसे हैं जो यहां के बाशिंदों को प्रकृति के प्रति अपने प्रेम और ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करने पर मजबूर कर देते हैं. इन्हीं लोक पर्वों में से एक है हरेला पर्व या हरेला त्यौहार.
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हरेला पर्व कब मनाया जाता है?
प्रकृति को समर्पित उत्तराखंड का यह लोक पर्व हरेला हर वर्ष श्रावण मास के पहले दिन मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, वर्ष 2022 में हरेला त्यौहार 16 जुलाई को मनाया जाएगा.
हरेला त्यौहार के ठीक 10 दिन पहले आसाढ़ मास में हरेला बोया जाता है और श्रावण मास में कर्क संक्रांति के दिन हरेला काटकर यह त्यौहार मनाया जाता है. उत्तराखंड की राज्य सरकार ने वर्ष 2021 से प्रत्येक वर्ष लोक पर्व हरेला के दिन, सार्वजनिक अवकाश होने की घोषणा की है.
हरेला का अर्थ क्या है?
हरेला का शाब्दिक अर्थ है ‘हरियाली’. वैसे तो उत्तराखंड में हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है. चैत्र माह में, श्रावण माह में और अश्विन माह में. लेकिन श्रावण माह में मनाए जाने वाले हरेला पर्व का विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि, यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है.
- चैत्र माह में हरेला नवरात्रि के प्रथम दिन बोया जाता है और नवमी के दिन काटा जाता है.
- श्रावण माह में हरेला सावन लगने से 9 दिन पहले आसाढ़ माह में बोया जाता है और दस दिन बाद सावन के प्रथम दिन काटा जाता है.
- आश्विन माह में नवरात्रि के प्रथम दिन हरेला बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है.
चैत्र माह में बोया और काटा जाने वाला हरेला ग्रीष्म ऋतु के आगमन का सूचक होता है जबकि, आश्विन माह में बोया और काटा जाने वाला हरेला शीत ऋतु के आगमन का सूचक होता है.
हरेला पर्व क्यों मनाया जाता है?
हरेला पर्व विशेष रूप से उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. यह कुमांऊनी संस्कृति का प्रमुख लोकपर्व है.
जिस प्रकार मकर संक्रांति से सूर्य भगवान उत्तरायण हो जाते हैं, वैसे ही कर्क संक्रांति से सूर्य भगवान दक्षिणायन हो जाते हैं.
मकर संक्रांति से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं जबकि, कर्क संक्रांति से दिन छोटे और रातें बड़ी होने लगती हैं.
घर में सुख-समृद्धि बनाए रखने की कामना से ही हरेला बोया व काटा जाता है और हरेला पर्व मनाया जाता है.
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हरेला पर्व कैसे मनाया जाता है?
सावन लगने से लगभग 12 दिन पहले से ही हरेला पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. घर के पास शुद्ध स्थान से मिट्टी निकालकर सुखाई जाती है और उसे छानकर एक पात्र में रख लिया जाता है. फिर इसमें 5 से 7 प्रकार का मिश्रित अनाज जैसे: गेंहूँ, जौ, धान, भट्ट, गेहथ, सरसों आदि बोया जाता है. इसे ही हरेला बोना कहते हैं.
इसे ऐसे स्थान पर रखा जाता है जहां पर सूर्य की सीधी रौशनी न पड़े और रोज़ सुबह इसे पानी से सींचा जाता है.
9 दिन बाद ये हरियाली बड़ी हो जाती है और 10वें दिन इसे काटा जाता है. 4 से 6 इंच तक के इन लंबे पौधों को ही हरेला या हरियाली कहा जाता है. इसके बाद विधिवत पूजा-पाठ करके यह हरियाली हरेला देवता को चढ़ाई जाती है.
हरेला के दिन हरेला काटने के बाद हरेला गीत भी गाए जाते हैं. घर के बुजुर्ग बच्चों को हरेला की शुभकामनाएं देते हुए आशीष देते हैं और उनके सुखी जीवन की कामना करते हैं.
श्रावण मास में हरेला पर्व का महत्व
हरेला पर्व प्रकृति से प्रेम एवं आपसी प्रेम का प्रतीक है. श्रावण मास भगवान शिव को अति प्रिय है. उत्तराखंड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है इसलिए उत्तराखंड में श्रावण मास में मनाए जाने वाले हरेला पर्व का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है.
हरेला पर्व उत्तराखंड के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में भी हरियाली पर्व के रूप में मनाया जाता है. यहां पर इस दिन सांस्कृतिक आयोजन के साथ-साथ विशेष रूप से पौधारापण भी किया जाता है.
सभी उत्तराखंडवासियों को हरेला पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
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