मां का दूध शिशु के लिए अमृत के समान माना जाता है. शिशु के लिए इसके अनगिनत फायदे हैं. इसके साथ ही स्तनपान कराने से माँ को मिलने वाले फायदे भी कुछ कम नहीं हैं.
गर्भावस्था में महिला का शरीर होने वाले शिशु के लिए दूध बनाने की प्रक्रिया को शुरू कर देता है. इस प्रक्रिया के दौरान महिला के शरीर में अनेकों बदलाव आते हैं. स्तनों का आकार व वजन धीरे-धीरे बढ़ने लगता है.
शिशु को स्तनपान कराने से भी माँ की ब्रेस्ट के साइज़ और शेप में भी अंतर आ जाता है. इसलिए कुछ महिलाओं को डिलीवरी के बाद अपने फिगर की बहुत चिंता रहती है.
शरीर का आकार बिगड़ने के डर से कुछ माँएं अपने शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग कराने से डरती हैं और वे शिशु को स्तनपान कराने की बजाए फ़ॉर्मूला मिल्क या ऊपरी दूध पिलाना ज्यादा बेहतर समझती हैं.
लेकिन यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग कराने का जितना फायदा दूध पीने वाले शिशु को होता है उतना ही फायदा स्तनपान कराने वाली महिला को भी होता है.
तो चलिए अब जानते हैं कि स्तनपान कराने से माँ को मिलने वाले फायदे क्या-क्या हैं.
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स्तनपान कराने से माँ को मिलने वाले फायदे
शिशु को स्तनपान कराना न केवल माँ के लिए बल्कि शिशु के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद होता है. बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग कराने से जच्चा-बच्चा दोनों को ही ढेर सारे फ़ायदे होते हैं.
मां और शिशु के बीच भावनात्मक संबंध स्थापित होना
जब भी माँ अपने शिशु को स्तनपान कराती है तो दोनों ही एक दूसरे से स्किन टू स्किन टच में होते हैं. माँ और शिशु के बीच पारस्परिक संपर्क स्थापित होने के कारण दोनों के बीच एक बहुत ही प्यारा भावनात्मक, मजबूत तथा प्रेमपूर्ण संबंध स्थापित होता है.
कभी-कभी आपको ऐसी स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है कि कई कोशिशों के बाद भी माँ को दूध नहीं होता है या बहुत कम होता है तो ऐसी स्थिति में बच्चे को कटोरी या बोतल से ऊपरी दूध पिलाना पड़ता है. माँ के अलावा बच्चे की दादी, नानी या पापा भी बच्चे को ऊपरी दूध पिला सकते हैं. ऐसे में जो भी बच्चे को दूध पिला रहा होता है उनके और शिशु के बीच में एक भावनात्मक रिश्ता कायम हो जाता है.
जब माँ अपने बच्चे को स्तनपान कराती है तो माँ के शरीर में कुछ ऐसे हार्मोनल बदलाव आते हैं जिससे माँ का मन शांत रहता है.
स्तनपान कराने से माँ का एनीमिया से बचाव होता है
डिलीवरी के बाद कुछ महिलाएं एनीमिया की शिकार हो जाती हैं अर्थात् डिलीवरी के दौरान खून अधिक बह जाने की वजह से उनके शरीर में खून की कमी हो जाती है. माँ के शरीर में दोबारा से खून की कमी पूरी होने में काफ़ी समय लगता है.
डिलीवरी के बाद जो महिलाएं अपने शिशु को स्तनपान नहीं करवाती हैं डिलीवरी के बाद उनका मासिक चक्र 6 से 8 हफ़्तों से पहले ही आ जाता है यानि की उनका ओव्यूलेशन भी जल्दी हो जाता है और दोबारा से कंसीव करने की संभावना भी बढ़ जाती है. इतनी जल्दी प्रेगनेंसी कंसीव कर लेने से महिला के शरीर में शारीरिक कमजोरी भी आ सकती है और वे एनिमिक भी हो सकती हैं.
लेकिन जो महिलाएं बच्चे को अच्छी तरह से स्तनपान कराती हैं उनका मासिक चक्र 6 से 8 माह बाद आता है, जिस वजह से उनके शरीर में हीमोग्लोबीन अच्छा बनता है और यह उनके परिवार नियोजन के लिए भी सही रहता है. मासिक चक्र देर से आने से दो बच्चों के बीच में प्राकृतिक रूप से अंतर रखने में आसानी होती है.
कैंसर का ख़तरा नहीं रहता
जो महिलाएं स्तनपान नहीं कराती हैं, आगे चलकर उनमें ओवरी यानि अंडाशय का कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर होने का ख़तरा बना रहता है. इसके विपरीत जो महिलाएं नियमित रूप से शिशु को स्तनपान कराती हैं उनमें आगे चलकर कैंसर होने की संभावना न के बराबर रहती है.
वजन नियंत्रित रहता है
प्रेगनेंसी के दौरान अक्सर महिलाओं का वजन बढ़ जाता है और डिलीवरी होने के बाद अधिकतर महिलाओं की यह समस्या रहती है कि बढ़े हुए वजन को कम कैसे किया जाए. ऐसी महिलाओं की समस्या का समाधान है कि वे नियमित रूप से अपने शिशु को स्तनपान कराती रहें.
कुछ माताएं सिर्फ़ इस डर से बच्चे को स्तनपान नहीं करवाती हैं कि कहीं इससे उनकी फिगर न ख़राब हो जाए. उन्हें ये लगता है कि बेबी को स्तनपान करवाने से उनकी ब्रेस्ट की शेप और साइज़ ख़राब हो जाएगी. जबकि ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है. यह मात्र एक गलतफ़हमी है.
स्तनपान करवाने वाली महिलाओं के स्तन भारी हो जाते हैं. ब्रेस्ट फ़ीड करवाते समय यदि आपकी ब्रेस्ट को प्रॉपर सपोर्ट मिले तो उनके लूज़ होने या उनकी शेप ख़राब होने की संभावना नहीं रहती है. इसलिए ब्रेस्ट फ़ीडिंग करवाते समय उन्हें अच्छी तरह से ब्रेस्ट सपोर्ट दें. सही सपोर्ट मिलने से ब्रेस्ट की शेप और साइज़ दोनों ही सही रहते हैं.
डिलीवरी के बाद जो माताएं रोज़ाना अपने शिशु को स्तनपान करवाती हैं, एक्सरसाइज़ करती हैं और बैलेंस डाइट को फ़ॉलो करती हैं उनका वजन कंट्रोल में रहता है और वे जल्दी ही अपना पहले वाला फिगर प्राप्त कर लेती हैं क्योंकि स्तनपान करवाने के दौरान आपके शरीर में जमा एक्स्ट्रा फैट धीरे-धीरे कम होने लगता है.
शरीर अपनी पूर्व अवस्था में वापस आता है
स्तनपान करवाना न केवल शिशु के लिए बल्कि माँ के लिए भी फायदेमंद साबित होता है. स्तनपान के समय जब शिशु आपकी ब्रेस्ट से दूध लेता है तो माँ के शरीर से ऐसे हार्मोन्स उत्पन्न होते हैं जो गर्भाशय को अपने पुराने आकार में वापस लाने में सहायता करते हैं और गर्भाशय धीरे-धीरे सिकुड़ता जाता है. स्तनपान करवाने वाली महिलाओं का वजन भी अपेक्षाकृत कम होता है.
ब्रेस्ट मिल्क साफ़-सुथरा होता है
फ़ॉर्मूला मिल्क को बार-बार गर्म करके बच्चे को देना पड़ता है. बार-बार बोतल में गर्म दूध डालकर शिशु को पिलाने से पहले यदि पूर्ण स्वच्छता का ध्यान न रखा गया तो कभी-कभी इससे शिशु को इन्फैक्शन होने की भी संभावना रहती है.
इसके विपरीत ब्रेस्ट मिल्क शिशु के लिए एकदम रेडी रहता है, यह साफ़-सुथरा होता है, इसमें किसी भी तरह की कोई भी मिलावट नहीं होती है और न ही इसके ख़राब होने की कोई संभावना रहती है. इसके लिए बार-बार बोतल धोने, उसे साफ़ करने आदि की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है.
ब्रेस्ट मिल्क का टेम्प्रेचर बच्चे के लिए एकदम परफेक्ट रहता है. माँ लेटे-लेटे हुए भी अपने शिशु को स्तनपान करवा सकती हैं. स्तनपान करवाना माँ व शिशु दोनों के लिए ही कम्फर्टेबल रहता है.
ब्रेस्टमिल्क फ्री होता है
फ़ॉर्मूला मिल्क का खर्चा बहुत अधिक होता है जबकि ब्रेस्ट मिल्क एकदम फ्री होता है. ज़रूरी नहीं है कि हर बच्चा फ़ॉर्मूला मिल्क को पचा सके. कभी-कभी शिशु, फ़ॉर्मूला मिल्क या बाहर के दूध को पचाने में सक्षम नहीं होता है और इस कारण शिशु को डायरिया, निमोनिया होने की संभावना अधिक रहती है. लेकिन ब्रेस्ट मिल्क देने में ऐसी किसी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता है. इसलिए शिशु की हेल्थ के लिए शिशु को स्तनपान करवाना ही सबसे बेहतर है.
स्तनपान से संबंधित सवाल-जवाब
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क्या स्तनपान से स्तनों का आकार खराब हो जाता है?
यह केवल एक मिथक है कि स्तनपान करवाने से स्तनों का आकार खराब होता है. प्रत्येक गर्भावस्था बच्चे के पोषण और दूध के निर्माण के लिए स्तनों को विकसित करके उनके आकार को बढ़ा देती है. इस प्रक्रिया का स्तनपान से कोई लेना-देना नहीं है. स्तनपान करवाते समय ब्रेस्ट को सही सपोर्ट देने से स्तनों का आकार खराब नहीं होता है.
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स्तनपान कब व कितनी मात्रा में करवाना चाहिए?
डिलीवरी के बाद जितनी जल्दी संभव हो सके शिशु को स्तनपान करवाना चाहिए. यदि शिशु स्तनपान करने में सक्षम है तो उसे जन्म लेने के 24 घंटे के भीतर ही कम से कम 5 मिनट तक स्तनपान करवाना चाहिए. शिशु को दूध पिलाने का समय और मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाएं.
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स्तनपान के दौरान मां का आहार कैसा होना चाहिए?
स्तनपान कराने वाली मां को सामान्य से अधिक भोजन की आवश्यकता होती है, जिससे उसके शरीर में बच्चे के लिए पर्याप्त दूध बन सके और बच्चे को उचित पोषण मिल सके. स्तनपान कराने वाली महिला को कैल्शियम की अधिक आवश्यकता होती है. इसलिए इस दौरान डेयरी उत्पाद का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए.
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स्तनपान कराने वाली महिला को क्या नहीं खाना चाहिए?
स्तनपान कराने वाली महिला को ज्य़ादा मिर्च-मसालेदार भोजन, ठंडे खाद्य पदार्थ जैसे: कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम आदि, उड़द की दाल, बीन्स और एल्कोहल आदि का सेवन नहीं करना चाहिए.