प्रेगनेंसी के दौरान गर्भवती महिलाओं को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. उनमें से एक है प्रेगनेंसी में एमनिओटिक फ्लूइड का कम होना. यह एक ऐसी समस्या है जिस पर यदि समय रहते ध्यान ना दिया गया तो यह माँ व शिशु दोनों के लिए ही हानिकारक हो सकती है.
प्रेगनेंसी के किसी भी चरण में यदि एमनिओटिक फ्लूइड की मात्रा सामान्य से कम हो जाती है तो इस स्थिति को एमनिओटिक फ्लूइड की कमी कहते हैं.
आज के इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि एमनिओटिक फ्लूइड क्या होता है, यह शिशु के लिए क्या कार्य करता है, इसकी कमी से शिशु पर क्या प्रभाव पड़ता है और इसे कैसे बढ़ाया जा सकता है.
इसके साथ ही हम ये भी जानेंगे कि प्रेगनेंसी में एमनिओटिक फ्लूइड का कम और ज्यादा होना गर्भ में पल रहे शिशु के विकास को किस तरह से प्रभावित कर सकता है.
विषय - सूची
एमनिओटिक फ्लूइड क्या है?
एमनिओटिक फ्लूइड गर्भाशय के अंदर का पानी होता है. बच्चा पूरे 9 माह तक पानी से भरी हुई इसी थैली में रहता है. प्रेगनेंसी शुरू होने के 12 दिन के अंदर-अंदर एमनिओटिक सैक यानि पानी की झिल्ली के अंदर एमनिओटिक फ्लूइड (एमनिओटिक द्रव) का निर्माण शुरू हो जाता है.
गर्भाशय में बच्चा इसी तरल पदार्थ यानि एमनिओटिक फ्लूइड से घिरा हुआ रहता है और इसके अंदर ही उसका पूरा विकास होता है.
प्रेगनेंसी के शुरूआती चरण में ये माँ के शरीर से ही बनता है लेकिन धीरे-धीरे इसमें पानी के साथ-साथ प्रोटीन, कर्बोहाईड्रेट व अन्य पोषक तत्व भी शामिल होते जाते हैं. यह पानी से थोड़ा गाढ़ा द्रव होता है.
एमनिओटिक फ्लूइड का महत्त्व व इसके कार्य
एमनिओटिक फ्लूइड बच्चे के सम्पूर्ण विकास व सुरक्षा के लिए बहुत ही जरूरी होता है. महिला के गर्भाशय में एमनिओटिक फ्लूइड की उचित मात्रा होने से शिशु गर्भ में आसानी से घूम सकता है, जिससे उसका सही विकास संभव हो पाता है.
आइये अब जानते हैं कि एमनिओटिक फ्लूइड गर्भ में पल रहे शिशु के लिए क्या कार्य करता है.
भ्रूण के लिए सुरक्षा कवच की तरह कार्य करता है
एमनिओटिक फ्लूइड गर्भ में भ्रूण के लिए सुरक्षा कवच की तरह कार्य करता है. यह विकासशील भ्रूण को किसी भी तरह के बाहरी दबाव या बाहरी झटकों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
गर्भ में शिशु को हलचल के लिए पर्याप्त स्थान देता है
यह गर्भ में शिशु को हलचल के लिए पर्याप्त स्थान देता है, जिससे शिशु को पेट में मूवमेंट करने में आसानी हो और शिशु की मांसपेशियां व हड्डियां मजबूत बनें.
उंगलियों के विकास में मदद करता है
इसके होने से शिशु के हाथ-पैरों की उंगलियां भी एक साथ विकसित होती हैं.
गर्भस्थ शिशु के फेफड़ों व पाचन तंत्र के विकास में मदद करता है
एमनिओटिक फ्लूइड की मदद से ही नवजात शिशु के फेफड़ों व पाचन तंत्र का सही से विकास संभव हो पाता है.
शिशु के तापमान को नियंत्रित रखता है
यह गर्भ में शिशु के तापमान को भी नियंत्रित रखता है.
शिशु की गर्भनाल की सुरक्षा करता है
यह शिशु की गर्भनाल को सिकुड़ने नहीं देता, जिस वजह से शिशु माँ के शरीर से पोषक तत्वों को आसानी से ग्रहण कर पाता है.
इन्फेक्शन से शिशु का बचाव करने में सहायक है
यह गर्भस्थ शिशु को किसी भी प्रकार के इन्फेक्शन से बचाने में सहायक होता है.
एमनिओटिक फ्लूइड कितना होना चाहिए?
शिशु नियमित तौर पर एमनिओटिक फ्लूइड को निगलता रहता है और फिर इसी को यूरीन के रूप में बाहर निकालता है. इस प्रकार से पानी की थैली में एमनिओटिक फ्लूइड की मात्रा रोज़ाना घटती-बढ़ती रहती है.
प्रेगनेंसी के दौरान एमनिओटिक फ्लूइड की सही मात्रा का पता लगाने के लिए समय-समय पर इसकी जांच करवाना आवश्यक है. यदि गर्भवती महिला के शरीर में एमनिओटिक फ्लूइड सामान्य स्तर से बहुत ज्यादा या बहुत कम है तो महिला की प्रेगनेंसी में complications आ सकती हैं.
एमनिओटिक फ्लूइड की जांच A.F.I Test यानि Amniotic Fluid Index के जरिए की जाती है और इसे सेंटीमीटर में मापा जाता है. इसे सुरक्षित तरीके से मापने के लिए गर्भवती महिला की सोनोग्राफी की जाती है.
सामान्य स्तर – सामान्य रूप से एमनिओटिक फ्लूइड का स्तर 5 से 25 सेंटीमीटर तक होता है. स्वस्थ प्रेगनेंसी के लिए एमनिओटिक फ्लूइड का यह स्तर सामान्य माना जाता है.
ओलिगोहाइड्रेमनिओस – इसमें एमनिओटिक फ्लूइड का स्तर 5 या 6 सेंटीमीटर से कम होता है. गर्भ में जब एमनिओटिक फ्लूइड की मात्रा जरूरत से ज्यादा कम हो जाती है तो इसे ओलिगोहाइड्रेमनिओस कहते हैं.
पॉलीहाइड्रमनिओस – इसमें एमनिओटिक फ्लूइड का स्तर 25 सेंटीमीटर से अधिक हो जाता है. गर्भ में जब एमनिओटिक फ्लूइड की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है तो इसे पॉलीहाइड्रमनिओस कहते हैं.
एक हैल्दी प्रेगनेंसी के लिए एमनिओटिक फ्लूइड का स्तर सामान्य से ना ही अधिक होना चाहिए और ना ही सामान्य से बहुत कम होना चाहिए.
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एमनिओटिक फ्लूइड का ज्यादा होना
गर्भ में जब एमनिओटिक फ्लूइड की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है तो इसे पॉलीहाइड्रमनिओस या फिर एमनिओटिक फ्लूइड का ज्यादा होना कहते हैं. कई कारणों से गर्भ में इसकी मात्रा बढ़ सकती है. जैसे- गर्भाशय में इन्फेक्शन हो जाना, ट्विन प्रेगनेंसी, शिशु में रेड ब्लड सेल्स की कमी होना इत्यादि.
एमनिओटिक फ्लूइड ज्यादा होने से प्रीमैच्योर डिलीवरी अर्थात् समय से पूर्व डिलीवरी, सिज़ेरियन डिलीवरी या फिर स्टिल बर्थ की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है और कभी-कभी गर्भपात का ख़तरा भी रहता है.
एमनिओटिक फ्लूइड कम होने के क्या कारण हैं?
- पानी की थैली का फटना
- भ्रूण की वृद्धि ठीक से ना होना
- शिशु के किडनी या यूरीनरी सिस्टम में समस्या उत्पन्न होना
- प्रेगनेंसी के दौरान महिला को किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक समस्या होना जैसे- हाई ब्लड प्रेशर, शुगर, तनाव या डिहाइड्रेशन होना
- महिला के प्लेसेंटा में समस्या होने से रक्त का प्रवाह शिशु तक सुचारू रूप से नहीं हो पाता है और एमनिओटिक फ्लूइड भी कम होता जाता है.
- अत्यधिक मोटापा
- डिलीवरी की तय तिथि निकल जाना
- गर्भ में एक से अधिक शिशु होना
- गर्भवती महिला के द्वारा हाई ब्लड प्रेशर की दवा का सेवन करना
- प्रेगनेंसी के दौरान अत्यधिक धूम्रपान या शराब का सेवन करना
- गर्भवती महिला के द्वारा पानी व तरल पदार्थों का सेवन बहुत ही कम मात्रा में करना
एमनिओटिक फ्लूइड कम होने के लक्षण
ज्यादातर महिलाओं में एमनिओटिक फ्लूइड की कमी तीसरे ट्राइमेस्टर यानि 36 वें हफ़्ते के बाद दिखाई देती है, जब महिला का शरीर डिलीवरी के लिए तैयार होने लगता है. जब उसका शिशु जन्म लेने के लिए तैयार होता है तो यह द्रव स्वयं ही बाहर निकल जाता है. इसी प्रक्रिया को पानी की थैली का फटना कहते हैं.
जब ये थैली लीकेज होनी शुरू हो जाये तब महिला को तुरंत हॉस्पिटल जाना चाहिए. यदि आपने लीकेज शुरू हो जाने के बाद हॉस्पिटल जाने में ज़रा सी भी देरी कर दी तो इससे पेट में शिशु को इन्फेक्शन होने का ख़तरा बढ़ जाता है.
इस स्थिति में शिशु तक ऑक्सीजन की सप्लाई पहुंचने में देरी हो सकती है, और गर्भ में शिशु का दम घुट सकता है. इसलिए 24 घंटे के अंदर-अंदर डिलीवरी करवाना बहुत ही जरूरी हो जाता है.
नीचे कुछ सामान्य लक्षण दिए गए हैं, जिन्हें देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि महिला में एमनिओटिक फ्लूइड की कमी हो रही है.
- प्रेगनेंसी की अवधि की तुलना में पेट का आकार कम दिखाई देना
- गर्भ में बच्चे की हलचल कम हो जाना
- अचानक से एमनिओटिक फ्लूइड का रिसाव होना
- गर्भाशय में संकुचन होना
एमनिओटिक फ्लूइड कम होने से शिशु पर क्या प्रभाव पड़ता है?
गर्भ में शिशु के विकास में बाधा आना
प्रेगनेंसी में इसकी कमी से शिशु को गर्भ में विकसित होने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है और उसके विकास में बाधा आ सकती है.
शिशु के फेफड़े काम नहीं करते हैं
एमनिओटिक फ्लूइड कम होने से शिशु के फेफड़े सही से काम नहीं कर पाते हैं.
गर्भपात का ख़तरा
यदि पहले या दूसरे ट्राइमेस्टर में ही इसकी मात्रा कम हो जाये तो गर्भपात होने की आशंका रहती है. यदि दवा लेने के बाद भी यह नही बढ़ रहा है तो इसकी बहुत ज्यादा कमी होने से मिसकैरेज का भी खतरा रहता है.
सिज़ेरियन डिलीवरी की संभावना
अक्सर तीसरे ट्राइमेस्टर में सोनोग्राफी से पता चलता है कि आपके शरीर में एमनिओटिक फ्लूइड की कमी है तो हो सकता है कि डिलीवरी के दौरान गर्भनाल कुछ सुकड़ी हुई हो.
आखिरी ट्राइमेस्टर में इसकी ज्यादा कमी हो जाने से समय से पहले डिलीवरी या फिर महिला की सिज़ेरियन डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है.
डिलीवरी के वक़्त परेशानी
डिलीवरी के वक़्त कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है जैसे- गर्भ में शिशु की पोजिशन उल्टी हो जाना यानि बेबी का सिर ऊपर और पैर नीचे की तरफ़ हो जाना, गर्भनाल का फंसना या दब जाना या फिर बच्चे में ऑक्सीजन की कमी होना.
एमनिओटिक फ्लूइड बढ़ाने के उपाय
यदि प्रेगनेंसी के दौरान गर्भवती महिला के शरीर में पानी की कमी है तो पानी की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है. इसके लिए आपको नीचे दी गई जरूरी बातों का ध्यान रखना होगा.
खूब पानी पियें
पूरी प्रेगनेंसी के दौरान गर्भवती महिला को खूब सारा पानी पीना चाहिए क्योंकि शरीर में पानी का स्तर बढ़ने से एमनिओटिक फ्लूइड का स्तर भी बढ़ता है, इसके साथ ही तरल पदार्थों का सेवन भी अधिक से अधिक करना चाहिए.
खानपान पर ध्यान दें
अपना खानपान सही रखें. हमेंशा पौष्टिक भोजन करें. पानी की मात्रा वाले फ़ल खाएं जो आपके शरीर को हाइड्रेट रख सकें, जैसे- टमाटर, तरबूज, खरबूज, अंगूर, खीरा, मूली, गाजर, ब्रोकली, पालक आदि.
शराब व धूम्रपान से दूर रहें
प्रेगनेंसी के दौरान धूम्रपान व शराब का सेवन बिल्कुल भी ना करें. प्रेगनेंसी के दौरान इनके इस्तेमाल से आपके शरीर में पानी की कमी हो सकती है जिससे आपके शरीर में एमनिओटिक फ्लूइड का स्तर कम हो सकता है.
नियमित व्यायाम करें
नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर के सभी अंगों जैसे- प्लेसेंटा व गर्भाशय में भी ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और रक्त का प्रवाह बढ़ने से आपके शरीर में एमनिओटिक फ्लूइड का स्तर भी बढ़ेगा. अतः यदि आपको डॉक्टर ने मना नहीं किया है तो कुछ देर रोज़ाना exercise करें.
योग करें एवं टहलना जारी रखें
प्रेगनेंसी में रोज योग करें और पूरी प्रेगनेंसी के दौरान टहलना जारी रखें. टहलने से आपको प्यास भी लगती है जिससे आप खूब पानी पियेंगी और आपके शरीर में पानी और एमनिओटिक फ्लूइड की कमी नहीं होगी.
डॉक्टर के परामर्श के बिना कोई भी दवा न लें
बिना डॉक्टर से पूछे कोई भी दवा ना लें क्योंकि कुछ दवाओं के इस्तेमाल से आपके शरीर में एमनिओटिक फ्लूइड की कमी हो सकती है.
अपने शरीर को आराम भी दें
खुद को एक्टिव रखने के साथ ही अपने शरीर को भरपूर आराम भी दें.
रेगुलर चेकअप करवाती रहें
समय–समय पर अपनी जांच करवाती रहें ताकि समय रहते किसी भी समस्या का निदान किया जा सके.
डॉक्टर द्वारा दी गई दवा को नियमित रूप से लें
डॉक्टर के द्वारा दी गई दवा समय पर लेना ना भूलें, इसमें एमनिओटिक फ्लूइड को बढ़ाने की दवा भी दी जाती है.
बायीं करवट में लेटे या सोएं
यदि गर्भवती महिला बायीं करवट लेकर लेटती है तो इस पोजिशन में गर्भ में शिशु को पर्याप्त मात्रा में खून व पोषक तत्व पहुँचते हैं जिससे उसका विकास होता है और एमनिओटिक फ्लूइड की कमी दूर होती है.
एमनिओटिक फ्लूइड से जुड़े सवाल-जवाब
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एक सामान्य गर्भावस्था में एमनीओटिक फ्लूइड कितना होना चाहिए?
एक सामान्य गर्भावस्था में एमनिओटिक फ्लूइड का स्तर 5 से 25 सेंटीमीटर तक होना चाहिए.
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गर्भावस्था के समय एमनिओटिक फ्लूइड की कमी होने के लक्षण क्या हैं?
गर्भावस्था के समय एमनिओटिक फ्लूइड की कमी होने के लक्षण:
1. प्रेगनेंसी की अवधि की तुलना में पेट का आकार कम दिखाई देना
2. गर्भ में बच्चे की हलचल कम हो जाना
3. अचानक से एमनिओटिक फ्लूइड का रिसाव होना
4. गर्भाशय में संकुचन होना